बुद्ध की धम्मचक्रप्रवर्तनमुद्रा जो है वह बहुत ही ज्यादा बहुचर्चित और प्रसिद्ध है ! सारनाथ मे तथागत बुद्ध ने जो पेहेले 5 लोगोको धम्म का उपदेश दिया उसे धम्मचक्कप्रवर्तन सुत्त कहा जाता है !
गुप्त काल में भारत के कला क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण केंद्र था सारनाथ और इस अदभूत कला दृष्टि से अगर हम देखते हैं तो बुद्ध के धम्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा की और रुचि से देख सकते हैं ! बुद्ध की धम्मा चक्र मुद्रा में हम बुद्ध की एकाग्रता, बुद्ध का ज्ञान, बुद्ध की शिक्षा बुद्ध की शांति और कलाकार की कला का एक अति उत्तम नमूना देख सकते हैं.
जब हम इस मूर्ति को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि यह मूर्ति आज भी जीवित है अभी यह हमसे बोलेगी इस मूर्ति में आप बुद्ध का एक स्मित हास्य देख सकते हैं पद्मासन में बैठे बुद्ध के चेहरे के पीछे एक गोल आकार आकृती का का सुंदर पाषाण है जिस पर बहुत सारे नक्षी काम किए गए हैं जो बुद्ध को एक ज्ञानसूर्य का प्रतिरूप दर्शाते हैं गोलाकार में फूल और ढेर सारे अलंकार अलंकार भी अंकित किए गए हैं सिद्धार्थ कॉलेज में बुद्ध की मूर्ति स्थापित करणी थी तो बाबा साहब ने बनाई हुई सिद्धार्थ कॉलेज की मूर्ति हूबहू इस सारनाथ में मिली धम्माचक्रप्रवर्तन मुद्रा के मूर्ति की समान ही है , इसलिए हम कह सकते हैं कि यह मूर्ति बाबासाहब को भी बहुत पसंद थी बुद्ध के दोनों बाजू में दो दोनों दिशाओं में मृग (हिरण) दिखाए गए हैं जो सारनाथ (मृगदाय वन) से इस मूर्ति को जोड़ने के लिए स्थापन किए गए हैं , बुद्ध के आसन के नीचे एक धम्मचक्र दिखाई देता है और यह धम्मचक्र जो है यह बुद्ध के धम्मचक्रप्रवर्तन सुत्त के साथ इस मूर्ति को जोड़ने के लिए वहां पर स्थापित किया गया है, इस मूर्ति का हास्य एक पहचान है और एक पर्याय है जो बोलते हुए जीवित बुद्ध को दर्शाता है, बुद्ध का मार्ग यह मध्यम मार्ग दर्शाता है और इसीलिए धम्मचक्रप्रवर्तन मुद्रा में बुद्ध के बाएं हाथ के बीच की उंगली उनके दाएं हाथ के बीच के उंगली को स्पर्श करती है यह मुद्रा बुद्ध का मध्यम मार्ग दर्शाती है, इस मूर्ति के नीचे पांच लोगों की भी प्रतिमाएं हैं जिन लोगों ने बुद्ध के पहले 5 भिक्खू होने का सम्मान पाया था और इसके साथ एक महिला और एक छोटे बच्चे का भी छवी है, तो बहुत से लोग प्रश्न करते हैं कि 5 भिक्षुओं के बारे में तो हमें पता है लेकिन यह माता और यह बेटा यह इस मूर्ति में क्यों है? तो उसका उत्तर ऐसा है की वो महिला और बालक यह कोई और नहीं बल्कि मूर्तिकार की ही छवी है, ऐसी मान्यता है. उस महिलाओं को अपने बेटे पर बहुत सारा प्रेम है ऐसा मूर्ति हमें दर्शाती है आजकल जैसा होता है कि कलाकार लोग जब कुछ कला का प्रदर्शन करते हैं तो वह उस पर अपनी हस्ताक्षर या अपनी कुछ छवी डालते हैं वैसे ही उस समय कलाकार ने खुद की छवी को उसकी मूर्ती में मिलाया होगा ऐसा देखने को मिलता है !
0 Comments