चौखंडी स्तूप :-
यह स्तूप वाराणसी से सारनाथ को जाने के रास्ते पर बाये बाजू को है ! यहां से नजदीक ही धम्मेक स्तूप और सारनाथ म्यूजियम है ! सारनाथ म्यूजियम से 5 मिनट के अंतर पर ही आपको यह स्तूप रास्ते पर दिखाई देगा यह करीब सारनाथ से 0.6 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम की तरफ है यह स्तूप एक मिट्टी के बने छोटे पर्वत पर पक्की ईंटों के साथ मजबूत तरीके से खड़ा है! चौकोनी कुर्सी पर बनावट होने की वजह से इसे "चौखंडी स्तूप" किसे कहा जाता है यह स्तूप 84 फिट ऊंचा है और इसके टूटे-फूटे अवशेष आज हमें दिखाई देते है! स्तूप के नजदीक ही एक भव्य विशाल काय बुद्ध मूर्ति है जो 80 फुट ऊंची है और जिसका समागम दलाई लामा के हाथों से हुआ है!
जब तथागत बुद्ध को "बुद्धगया" में ज्ञान प्राप्त हुआ था उस वक्त बुद्ध सारनाथ में पहली बार आए थे और उसके बाद उन्होंने अपना प्रथम धम्मउपदेश 5 लोगों को दिया था ! जिसे हम धम्मचक्कप्रवर्तन केहते है ! ये पांच लोग वही थे जो बुद्ध को छोड़कर गए थे और छोड़ने का कारण यह था कि उन्हें लगता था कि सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्ति नही होगी !
तथागत को ज्ञान प्राप्ति होने के पश्चात जब बुद्ध बुद्ध ने सोचा की की पेहला उपदेश किसे दु तो उनके मन मे इन 5 लोगोका खयाल आया ! तो बुद्ध ने एनके पास जनेका निर्णय लिया और इनका पता चलने पर बुद्ध को समझा के ये लोग अभी ऋषिपत्तन मृगदाव (सारनाथ) मे रह रहे हैं तो तथागत बुद्ध ने सारनाथ की और मार्गक्रमण किया !
ऋषीपत्तन मृगदाव (सारनाथ) में आनेके बाद एक जगह पर खड़े होकर तथागत बुद्ध ने इन पंचवर्गीय भिक्खूओ को देखा और पाया के उस वक्त वे सभी एक झोपड़ी में रह रहे थे ! तथागत बुद्ध जिस जगह पेहली बार ऊन पांचों भिक्खूओ को मिले उसी जगह पर सम्राट अशोक जी ने एक भव्य स्तूप का निर्माण किया जिसकी वजह से ये जगाह, उसका इतिहास हमेशा के लिए अजरामर हो गया और उसी स्तूप को हम "चौखंडी स्तूप" कहते है!
यहां पर आप सम्राट अशोका की बुद्ध के प्रति निष्ठा, प्रेम और धम्म के प्रति दूरदृष्टि देख सकते हैं !
जब इस जगह पर उत्खनन हुआ तो इधर एक बुद्ध की मूर्ति प्राप्त हुई जो धम्मचक्कप्रवर्तन के मुद्रा में थी ! यह बैठे मुद्रा बुद्ध की बहुत प्रचलित है और सब इसे जाणते है !
इतिहास के आधार पर बाबर का बेटा हुमायून भागकर चौखंडी स्तूप में छुप कर बैठा था इसलिए उसके प्राण बचे थे ! हुमायून का लड़का सम्राट अकबर इसने ईसवी. 1588 में चौखंडी स्तूप के ऊपर का भाग उनके पिता (यांनी हुमायून) के शरणागती के स्मृति पे (स्मृतिप्रीत्यर्थ) बनाया था ! इस भाग तक जाने के लिए आज भी चौखंडी स्तूप में रास्ता है !
इसमे मिली धम्मचक्कप्रवर्तन मूर्ती के बारे मे जानने के लिये "बुद्ध की धम्मचक्कप्रवर्तन मुद्रा वाली मूर्ती" इस आर्टिकल को पढे !
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Chaukhandi Stupa: -
This stupa is on the left hand side on the way to go from Varanasi to Sarnath! The Dhammek Stupa and Sarnath Museum are the nearest places from here. At a distance of 5 minutes from the Sarnath Museum, you will see this Stupa on the way, it is about 0.6 km south-west of Sarnath. Due to the design on the four-legged chair, it is called "Chaukhandi Stupa". This stupa is 84 feet high and its broken remains are visible to us today! Adjacent to the stupa there is a Huge Buddha statue which is 80 feet high and which was established by the hands of the Dalai Lama!
When the Tathagata Buddha attained enlightenment in "Budha Gaya", the Buddha first came to Sarnath and after that he gave his first dharma sermon to 5 people! Which we call Dhammachakpravan! These five people were the ones who left Buddha and the reason for leaving was that they thought that Siddhartha would not attain enlightenment!
After attaining enlightenment , when Buddha thought that who would preach the first preaching, he thought about these 5 people in his mind! So Buddha decided to go to to meet them, When he search wher they are then he found that all of them are in Rishipatan Mrugdav ie. Sarnath ! So he Started his journey towords Sarnath !
After coming to Rishipatana Mrigadava (Sarnath), Tathagata Buddha, stand in a place & saw these five-class bhikkhuos and found that at that time they were all living in a hut! The place where the Tathagata Buddha stood and inspected those five bhikkhuas, at the same place, Emperor Ashoka built a grand stupa, due to which this place , its history was forever ablaze and we called that stupa as "Chaukhandi Stupa". !
Here you can see the loyality , love of Emperor Ashoka towards Buddha & His Long vision towards Dhamma!
When the excavation took place at this place, a statue of Buddha was found here which was in the posture of Dhammachakpravartana! This sitting posture is very popular with Buddha and everyone knows it.
On the basis of history, Babur's son Humayun ran away and was hiding in the Chaukhandi stupa, so his life was left! Humayun's boy, Emperor Akbar. In 1588, the upper portion of the Chaukhandi Stupa was built on the memory of his father (ie. Humayun) as a refugee! There is still a way to reach this part in the Chaukhandi stupa!
To know about the Dhammachakpravartan idol found in it, read this article "Buddha's Dhammachakpravartan Murti/ Statue".
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